निपूते माँ-बाप -शेफाली
चतुर्वेदी
“तीन तीन बेटों की माँ हूँ , पर हूँ बिलकुल निपूती। ‘सड़क पर कूड़े में पड़ी रहती थी । हमें तरस आया तो हम इसे घर ले गए । लेकिन अब हम इसे अपने पास नहीं रख सकते , हमारे बीवी बच्चों को परेशान करती है ।‘ ,कहा और फेंक गए यहाँ । किस मूंह से कहती कि मेरी ही कोख के जने हैं।“ बताकर वो फूटकर रोने लगी । करीब 70 के वयस की सुमन दत्ता (बदला हुआ नाम) अब दो साल से अपने ही जैसी और महिलाओं के साथ जीने की नई वजह खोजने की जद्दोजहद में है । वो ही क्यूँ पास में एक और महिला भी बैठी है । नाम पूछने की हिम्मत ही नहीं हुई। चेहरा बिलकुल सपाट ,सुमन के साथ करीब 6-7 महीने से रहने के बावजूद सुमन के आँसू भी उन्हें पिघला नहीं पाये । चेहरे पर डरावनी शांति के साथ बैठी बैठी वो एक टक मुझे देखती रही । पूछने के पहले ही बोली ‘तीन बेटे पैदा किए । क्या हुआ? मार मार कर घर से निकाल दिया । रूपय पैसे की कोई कमी नहीं है एक बेटा संसद में गज़टेड अफसर है,एक सरविंग पायलट है और एक का अपना काम है । सबकुछ है ,पर माँ के लिए कुछ नहीं उनके पास ।‘ पथराई आवाज़ अपने आप में टूटे सपने की तसदीक कर रही थी। ये महिलाएं अपने जैसे हालातों से जूझ रहे 60 से 80-85 साल तक के पुरुषों के साथ फ़रीदाबाद रोड पर गुड़गांव स्थित गाँव ‘बंधवारी‘ के इस आश्रम में रहती हैं जिसे सब ‘गुरुकुल’ के नाम से जानते हैं ।
फिलहाल , इस आश्रम की दशा भी इन बुज़ुर्गों के जीवन जैसी ही बिखरी बिखरी है ।खुले
मैदान में पॉलिमर शीट की छत से बने अस्थाई
से 3-4 हाल सामने ही दिखते हैं जहां इन सबके पलंग पड़े हैं ।सिरहाने ही इन
सबका थोड़ा पर ज़रूरी सामान रखा है । दिन भर
इस गुरुकुल में ख़ासी हलचल दिखती है । करीब 20 युवा कार्य कर्ताओं की मदद से ये 200 से ऊपर बुजुर्ग अपनी और एक
दूसरे की देख रेख कर रहे हैं । इस गुरुकुल को चलाने वाली संस्था के प्रमुख रवि
कालरा बताते हैं कि इस आश्रम में चहल पहल इसलिए भी ज़्यादा दिखती है क्यूंकी
ज़्यादातर लोगों को चिकित्सकीय सहायता और देख रेख कि दरकार है । समय समय पर आपात
स्थिति में इन्हें हस्पताल भी ले जाना पड़ता है । इतना ही नहीं इस आश्रम में
पहुँचने वाले बुज़ुर्गों की हालत इस कदर खराब हो चुकी होती है कि यहाँ हर दो तीन
दिन में एक मौत अक्सर होती है ।
इस शोचनीय मृत्यु दर की बात करते हुए रवि कालरा
बहुत स्पष्ट तौर पर इस सब के लिए बदले हुए सामाजिक माहौल और नैतिक मूल्यों को
जिम्मेदार बताते हैं । वो कहते हैं कि अभी हाल ही में एक महिला की मृत्यु हुई उसे जलती चिता पर से
बचाया था । पढे लिखे परिवार की थी , पति पत्नी दिल्ली के
जनकपुरी में रहते थे । दोनों बच्चों को पढ़ा लिखाकर आईटी क्षेत्र में स्थापित किया
। बच्चों को ग्रीन कार्ड लेने के लिए पैसों की ज़रूरत थी इसलिए घर बेचा
और किराये के घर में रहने लगे । पति की मृत्यु होने पर जब बच्चे आए तो पिता
के दाह संस्कार के दौरान ही उन्हें जलती चिता पर छोड़ दिया । किसी ने हमें खबर की
तो हम उस वक़्त तो बचा लाये , पर इतनी जल चुकी थी कि दो ही
दिन में ज़िंदगी से हार गयी । रवि कालरा की बातों ने मुझे मजबूर किया कि मैं एक बार
ज़रा आंकड़े भी पलटकर देखूँ। आकड़ों ने बेचैनी और बढ़ा दी । आंकड़े कहते हैं कि देश की
कुल जनसंख्या का 7.4 प्रतिशत 60 साल से ऊपर बुज़ुर्गों की है । अगले दो से तीन
दशकों में ये संख्या तूफानी रफ्तार से बढ्ने को है और साल 2050 तक दुनिया में
रहनेवाला हर छठे वृद्ध का घर भारत होगा और
कुल जनसंख्या की 20 प्रतिशत आबादी वृद्ध
होगी । इतना ही नहीं चौंकाने वाला एक आंकड़ा ये भी है कि पिछले साल तक
बुज़ुर्गों के प्रति हिंसा के मामले 23 प्रतिशत थे जो इस साल के आंकड़ों में बढ़कर 50
प्रतिशत हो चुके हैं । इसमें भी घर में हिंसा का शिकार होने वाले बुज़ुर्गों में 52
प्रतिशत महिलाएं हैं और 48 प्रतिशत पुरुष।
जाने कहाँ जाकर रुकेंगे हम। आश्रम में रहने वाले ये माँ बाप तो अपने बच्चों की असंवेदनशीलता
की पराकाष्ठा झेल ही रहे हैं, उनका क्या जिनके माँ बाप घरों
में तो हैं पर हैं वहाँ भी अकेले ही । कारण कुछ भी हो सकता है ।
3:33 PM |
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