देखबे बाई मरबे झन.......
"देखबे बाई मरबे झन ,मोर इन्तजार
करबे (देखना बाई मर मत जाना ,मेरा इंतज़ार करना )" हाँ ,
उसे
ये ही कहकर उसका कन्धा झक झोर मैं दिल्ली चली आती थी / मैं हाथ हिलाकर
घर छोड़ के यात्रा पर निकल आती ,पर वो अगली बार मेरे वापिस पहुंचने तक बेचैन
ही रहती/ मैं
क्या कोरबा में हमारी कॉलोनी में पले बढे न जाने कितने बच्चे उसे ऐसे ही छोड़ आते
थे और वो वहीँ खड़ी सबकी वापसी की राह देखा करती /न जाने कितने परिवारों के लिए
उसका जिया ऐसे मिरमिराता था जैसे वो ही उन परिवारों की सर्वे सर्वा हो
/ हमारी काफी परेशानियों का हल थी वो,बिलकुल सिंड्रेला की कहानी वाली परी सा हाल था उसका/ क्या
हुआ अगर हमारी परी बूढी,बिना
दांत की,करीब करीब कुबड़ी
थी /वो हमारे लिए अप्सराओं से भी कहीं ज़्यादा खूबसूरत थी/आम बोलचाल में कहें तो वो हमारे घर की कामवाली
थी /पर सिर्फ बर्तन -कपडे और झाड़ू पोंछा उसका काम था /बाकी वो जो कुछ
करती वो उसकी ममता थी/
नाम -'तारन ' ,यथा नाम
तथा गुण /१३ साल की उम्र से लेकर ६० पार के वयस तक न जाने कितनी
ज़िंदगियाँ तार दी उसने/१२ साल की थी जब उसका ब्याह ज़मींदार के २० वर्षीय बेटे से हुआ /परिवार
कल्याण मंत्रालय के विभिन्न संदेशों की गूँज शायद उस तक नहीं पहुँच पायी थी/१४ साल
से २५ की उम्र तक लगभग हर साल गर्भवती हुई / पांच लडकियां दो बेटे हैं उसके / उसने बताया
था कि पीलिया से उसके पति की जान गयी ,उसने
घर और खेत के साथ बच्चे भी संभाले , कैसे पत्नी प्रेम के मारे उसके बेटे ने
अंगूठा लगवाकर छै बीघा ज़मीन अपने नाम कर ली और वो बेटियों की ऊँगली पकड़कर कोरबा पहुंची थी/साहब
मेमसाहब जब काम पे जाते तो तारन उनके बच्चों को नाश्ता कराती,खेलने
पार्क ले जाती,कहानियाँ सुनाती /और हाँ मम्मी
की मार से भी तो वो ही बचाया करती थी / एक तरह से दूसरों के बच्चों का
ख्याल रख कर वो अपने बच्चों के लिए
खुशियाँ जुटाती थी / जिन जिन घरों में तारन काम करती थी ,सब जानते थे कि वो अकेली है इसलिए कई
लोगों ने उसे अपने घर पर रहने का प्रस्ताव दिया /पर, कभी छह बीघा ज़मीन की मालकिन रही तारन की खुद्दारी में कोई कमी नहीं
आई थी/ सबका प्रस्ताव विनम्रता से ठुकराकर वो नज़दीक ही अयोध्यापुरी नाम की बस्ती
में रहने लगी थी/ एक एक कर के उसने बेटियों की शादी की और
ज़िम्मेदारियों से ही नहीं वो बेटियों से भी छूट
गयी थी /उसकी दो बेटियां काम की तलाश में दिल्ली चली आयीं थी और तारन कई
साल तक उनका इंतज़ार ही कर रही थी /शायद तारन जैसी कई माएं छत्तीसगढ़ में ऐसे
ही अपने बच्चों की एक झलक के लिए तड़पकर दम
तोड़ देती हैं पर जम्मू,पंजाब,दिल्ली,हिमाचल
और लेह चले आये उनके बच्चे जैसे उन्हें लगभग बिसरा ही देते हैं /
जब मैं पढाई के लिए भोपाल आई तो जैसे वो मुझे
खुद ब खुद दूर करने में जुट गयी थी,जैसे खुद को समझा रही हो /मेरे छोटे
भाई को देखकर बोली "मोर तो ए ही टूरा हे , देखबे जब मरहुँ तो ए ही मोला मिटटी देबे /मोर आपन टूरा मन तो मोला
बिसरा दीन हैं /"हिंदी में कहूँ तो उसे विश्वास था कि मेरा छोटा भाई ही उसे
मुखाग्नि देगा/बहरहाल , बाई
अब बीमार रहने लगी थी , दमा
उसका दम निकाल दिया करता था / अचानक एक दिन सुबह सुबह वो घर पर धमक गयी/बोली ,अब काम नहीं करूंगी ,लड़के ने गाँव बुलाया है /लड़के के पास
जाने से कहीं ज़्यादा ख़ुशी उससे उस गाँव और खेत के साथ उस घर लौटने की थी,जहाँ कभी वो ब्याह कर आई थी/हो भी
क्यों न ,उसके पति की
यादें भी तो वहीँ से जुडी थी /डबडबाई आँखों से उसने विदा ली ,वो गई पर हर मौके पर अभी भी याद आती
है/ घर का
माली उसके ही गाँव का था/ वो
ही समय समय पर उसके ज़िंदा और स्वस्थ होने की पुष्टि भी कर दिया करता था/ सुना
है वापिस लौटकर कुछ ही दिनों बाद उसने खाट
पकड़ ली थी /हम लोगों ने जब कोरबा छोड़ा तब उसे गए २ साल हो चुके थे / कोरबा से घर
शिफ्ट किये हम लोगों को अब पांच साल हो चुके हैं/तारन बाई की अब कोई खबर नहीं
मिलती /अब ऐसा कोई ज़रिया नहीं जिस से पता लग सके कि वो है भी या नहीं/
दिल्ली में जब कभी कुछ बंधुआ मज़दूरों के छूटकर
छत्तीसगढ़ वापिस जाने की खबर देखती सुनती
हूँ ,कहीं खो जाती
हूँ/सोचती हूँ काश !बाई को भी अपने बेटी दामाद मिल जाते /काश ! तारन के बेटे बहू ने उस से
किनारा न किया होता, उस
बूढी परी से इतने साल तक अपना घर न छूटा होता/ /काश! इन परियों को भी उतना ही
प्यार मिल पाता जितना उन्होंने हमें दिया /
बहरहाल , कोरबा की ये सिंड्रेला अपनी बूढी परी को अभी भी जब याद करती है तब
उसे अपनी ही आवाज़ गूंजती सुनाई देती है 'देखबे बाई मरबे झन........
9:14 PM |
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