अब तक सुना था कि ‘ममता’ और ‘आशा’ को सिर्फ महसूस किया जा सकता है।अब, तीन दिन के अपने गुजरात प्रवास के बाद मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि ‘ममता’ को देखा और ‘आशा’ को सुना भी जा सकता है।
गुजरात के आदिवासी बहुल पर औद्योगिक ज़िले वल्साड में धर्मपुरा ब्लाक में ‘मान’ नदी के मुहाने पर बसा है गांव ‘शेरीमल’ । करीब 3000 की आबादी वाला यह गाँव आज गुजरात के ही बाकी 26 ज़िलो के सभी गाँवों का प्रेरणास्रोत है।यह कहना मुश्किल है कि यहाँ ‘आशाओं’ का संगीत ममता का सृजन कर रहा है या ‘ममता’ की प्रेरणा से ‘आशाओं’ का संगीत उत्पन्न हो रहा है।
‘शेरीमल’ हमारी आपकी तरह ग्रीटिंग कार्ड कंपनियों की कृपा से साल में एक दिन ‘मातृ दिवस’ मनाने की बजाय, हर महीने में एक दिन ‘ममता दिवस’ मनाता है। ‘शेरीमल’ को एक नहीं पांच-पांच आशाओं का सहारा है। इन ‘आशाओं’ के सहारे ‘शेरीमल’ स्वस्थ्य भी है और सचेत भी।
नीता, मनीषा,उषा,स्नेहल और कल्पना ये वो पाँच आशाएं हैं जो ‘शेरीमल’ में रहने वाली धात्री माताओं से लेकर बुज़ुर्गों तक के स्वास्थ्य की कड़ी निगरानी रखे हुए हैं। दरअसल,राष्ट्रीय स्वास्थ्य एंव पोषण आहार कार्यक्रम के तहत गाँव में तैनात महिला स्वास्थ्यकर्मियों को ‘आशा’ का संबोधन दिया गया है। आदिवासी इलाकों में प्रत्येक 500 की आबादी पर एक ‘आशा’ की नियुक्ति का प्रावधान है। वलसाड ज़िले के 629 गांवों में ये नामित और नियुक्त आशाएं ‘ममता’ का सृजन कर रही हैं और इस सृजन की शुरुआत ‘शेरीमल’ से ही हुई है। राज्य सरकार और यूनिसेफ के संयुक्त प्रयासों का यह ‘ममता अभियान‘ दरअसल एक प्रयोग के तौर पर ‘शेरीमल’ में सन 2006 में शुरू किया गया और फिर धीरे-धीरे ये वलसाड ज़िले के बाकी के गाँवों में भी फैलता गया।
एक तरह से, ये अभियान ग्रामीण शिशु स्वास्थ्य और पोषण संबन्धी सभी सरकारी योजनाओं और यूनिसेफ की अवधारणाओं के बेहतरीन समन्वय का नतीजा है।
गुजरात के आदिवासी बहुल पर औद्योगिक ज़िले वल्साड में धर्मपुरा ब्लाक में ‘मान’ नदी के मुहाने पर बसा है गांव ‘शेरीमल’ । करीब 3000 की आबादी वाला यह गाँव आज गुजरात के ही बाकी 26 ज़िलो के सभी गाँवों का प्रेरणास्रोत है।यह कहना मुश्किल है कि यहाँ ‘आशाओं’ का संगीत ममता का सृजन कर रहा है या ‘ममता’ की प्रेरणा से ‘आशाओं’ का संगीत उत्पन्न हो रहा है।
‘शेरीमल’ हमारी आपकी तरह ग्रीटिंग कार्ड कंपनियों की कृपा से साल में एक दिन ‘मातृ दिवस’ मनाने की बजाय, हर महीने में एक दिन ‘ममता दिवस’ मनाता है। ‘शेरीमल’ को एक नहीं पांच-पांच आशाओं का सहारा है। इन ‘आशाओं’ के सहारे ‘शेरीमल’ स्वस्थ्य भी है और सचेत भी।
नीता, मनीषा,उषा,स्नेहल और कल्पना ये वो पाँच आशाएं हैं जो ‘शेरीमल’ में रहने वाली धात्री माताओं से लेकर बुज़ुर्गों तक के स्वास्थ्य की कड़ी निगरानी रखे हुए हैं। दरअसल,राष्ट्रीय स्वास्थ्य एंव पोषण आहार कार्यक्रम के तहत गाँव में तैनात महिला स्वास्थ्यकर्मियों को ‘आशा’ का संबोधन दिया गया है। आदिवासी इलाकों में प्रत्येक 500 की आबादी पर एक ‘आशा’ की नियुक्ति का प्रावधान है। वलसाड ज़िले के 629 गांवों में ये नामित और नियुक्त आशाएं ‘ममता’ का सृजन कर रही हैं और इस सृजन की शुरुआत ‘शेरीमल’ से ही हुई है। राज्य सरकार और यूनिसेफ के संयुक्त प्रयासों का यह ‘ममता अभियान‘ दरअसल एक प्रयोग के तौर पर ‘शेरीमल’ में सन 2006 में शुरू किया गया और फिर धीरे-धीरे ये वलसाड ज़िले के बाकी के गाँवों में भी फैलता गया।
एक तरह से, ये अभियान ग्रामीण शिशु स्वास्थ्य और पोषण संबन्धी सभी सरकारी योजनाओं और यूनिसेफ की अवधारणाओं के बेहतरीन समन्वय का नतीजा है।
Comments (8)
अच्छी जानकारी, रोचक तरीके से दी है आपने। भारत के "शेरीमल" जैसा बनाने की जरूरत है।
धन्यवाद पंकज! भारत के हेर गाँव को शेरिमल बनाने के लिए गुजरात जैसी राजनैतिक इच्छाशक्ति भी चाहिए दोस्त.
Ek unnat aur jaagrat karya!!! safaltaaon ke liye shubhkaamnaen !!!!
Divya Chugh,
Life Counselor
आशा ही जीवन है, जीवन ही आशा है...
और जीवन को देने वाली ममता है...
जय हिंद...
बहुत सुंदर
जानकारी तो रोचक है लेकिन मुझे लेखनी का तरीका अच्छा लगा ... शेफाली, दरअसल आपाधापी में पढ़ना और लिखना दोनों का अभियास और आदत खत्म हो चुकी है ... अब शायद कुछ ठीक हो ... ब्लॉग के कारन ... शुभकामनाएं !
हिंदी में लिखते रहने और लिखने के प्रयास में ही ब्लोगिंग शुरू की है.मेरी कोशिश रहेगी उन बातों को कहने की जो वैसे नहीं कह पा रही.हौसला देने और बढ़ाने के लिए आप सब का शुक्रिया.
vakayi mein yeh ek rochak jaankari hai isse agar hum apne aas paas bhi falliyein toh yeh vakayi mein ek kargar kadam hoga.. abha