"दुबली पतली सांवली लड़की,गज़ब के आत्मविश्वास से भरपूर...कंधे पर एक झोला.....उस झोले में पूरी दुनिया.खानाबदोश सा जीवन ,आँखों में एक अजब से प्रतिशोध की ज्वाला ." ये वो तस्वीर है जो मैंने देखी थी २ महीने पहले.दरअसल इस लड़की  को सामने से तो अब तक नहीं देख पायी हूँ पर इस  से रूबरू होनेवाले मेरे साथी अक्लाख ने ऐसा शब्द चित्र  खींचा की मैं इससे बात करने को बेचैन हो गयी.करीब २-३ दिन के प्रयास के बाद आखिर उसका नंबर भी मिल ही गया.फ़ोन नंबर मिलते ही बेचैनी और बढ़ गयी ..मुझे खुद से डर लग रहा था कि उसका दबंग रवैया मुझे चारों खाने चित न कर दे.कहीं उसका कोई उत्तर ऐसा न हो कि मेरे हाथ पाँव फूल जाएँ.सच कहूं तो मैं उसकी सच्चाई और बेबाकपन से डर रही थी.मैं डर रही थी उस एक महिला से जिसमे दुर्गा का शायद रूप है...वो रूप भी ऐसा कि गाँवों कि महिलाएं और कॉलेज की युवतियां अपने नाम के आगे अब उसका नाम लगाने लगी हैं.शायद कहीं ये नाम मुजफ्फरपुर,वैशाली और समस्तीपुर के आसपास के गाँवों की महिलाओं को सुरक्षा और आत्मबल प्रदान करता है.
 
बेचैनी ख़त्म करने का एक ही जरिया था...डर को ताक पर रख के फ़ोन पर बातचीत/फ़ोन लगा...दूसरी ओर से एक महीन आवाज़ आई...मैंने तुरंत पूछा....भारती जी बोल रही हैं?जवाब आया ...हां/मैंने कहा...आपसे थोड़ी बात करनी है.......वो बोली....मजदूर दिवस की तैय्यारियों में व्यस्त हूँ पर फिर भी बात तो करुँगी...आप १० मिनट में फ़ोन लगाइए./आवाज़ बहुत जानी पहचानी लगी.ऐसा लगा मानो...मुजफ्फरपुर की कोई आम लड़की ने फ़ोन उठाया हो/पर ये लड़की"भारती कुशवाहा"आम नहीं कुछ ख़ास है ये भी मैं जानती थी.एक बलात्कार के साक्षी के तौर पर टिके रहना...गवाही देते रहना.. हर  आम लड़की के बस की बात नहीं.फिर गुंडों द्वारा डराए जाने पर पति समेत अपना गाँव छोड़ना ,शहर छोड़ा ...आगरा में एक नयी दुनिया बसाई....दो बच्चों के भरण पोषण के लिए पति को वहीँ छोड़ कर वापिस मुजफ्फरपुर लौटी तो इस बार ज़मींदार परिवार की इस लड़की को दलितों की बस्ती में शरण मिली.बस्ती की लडकियां स्कूल के रास्ते में पड़ने वाले शराब के ठेकों के बाहर बैठे अधेढ़ उमरी नशेड़ियों और शराबियों से परेशान थी .....भारती ने लड़कियों को गोलबंद किया और पहुँच गयी ठेके पर...पहले पहल विनम्र निवेदन कर के ठेके के मालिक से ठेका बंद करने को कहा और फिर न मानने पर ठेके पर धावा बोलकर हमेशा के लिए ठेका ख़त्म कर दिया.इसके बाद तो जैसे शोषण और प्रताड़ना से पीड़ित लडकियां भारती के समूह में जुडती चली गयी.आज की तारीख में मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाके में धन्धेबाज़ भारती के नाम से कांपते हैं,करीब दो हज़ार महिलाओं का समूह भारती के साथ जुड़  चुका है....ये न सिर्फ अब न्याय के लिए लड़  रहे हैं बल्कि,गाँवों में बच्चों की पढाई और पढाई के लिए ज़रूरी अधोसंरचना के लिए भी कार्यरत हैं.
 
खैर ...दस मिनट बाद मैंने उससे पूछा कि कहाँ रहती हो आजकल?जवाब मिला......भैया दीदी लोग जहाँ जिस गाँव में रुकवा दें वहां/फिर पूछा सामान? जवाब मिला......है न एक "झोला."...२ जोड़ी कपडे,एक कॉपी,पेन,गोंद....और क्या चाहिए? बच्चे....?जब ये पूछा तो बोली......१५ दिन पहले मिली थी.
वो पति जिसके साथ दुनिया बसाई.....?...कुछ रूककर बोली......सुना है दिल्ली में हैं..और दूसरी शादी कर चुके हैं?
मैंने पूछा...डर नहीं लगता ...२७ साल कि उम्र में इतने दुश्मन बनाकर?जवाब आया...."जब तक डरती थी..सबने डराया....अब नहीं डरती हूँ तो लोग मुझसे डरते हैं?
कई बार लोग तुम्हें नक्सली कहते हैं?...वो बोली अगर एक भी सुराग मिल जाए तब बात कीजिएगा.
मैंने पूछा अगर कभी कोई कारण तुम्हें जेल ले जाया जाए तो?
जवाब मिला...हम अहिंसक आन्दोलन करते हैं...प्रशासन को जगाते हैं....न्याय कि गुहार लगाते हैं.इसलिए   ऐसा होगा नहीं..और अगर हो ही जाए तो बाहर ही कौन सा सुखी हैं?
मैंने कहा गाने सुनती हो?उसने कहा...गाती भी हूँ...और फिर बेधड़क गाने लगी.
वो दिल्ली आना चाहती है....सियासी टिकट के लिए नहीं.....अपने पति से एक बार मिलने भर को.उसे रेडियो सुनने कि चाह है...चाहती है कि लोग कोई उससे सिर्फ भारती भी बुलाये.....भारती दीदी या भारती जी नहीं.यकीनन इस लड़की में कुछ तो है......तीन बार धंधेबाजों और गुंडा तत्वों ने इसे मौत के मुहं  तक पहुँचाया और ये हर बार उठी दुगने जोश के साथ.जग अभी जीता नहीं....ये कभी हारी नहीं.मुजफ्फरपुर में अपने आप में अब एक आन्दोलन है "भारती"/१ घंटे और ११ मिनट की बातचीत में "भारती" की कई बातों ने मुझे झक झोरा...कई ने सिखाया,और कई चित्त कर गयीं.सही गलत से परे ये आज एक बहुत बड़ा सच है की भारती करीब २००० महिलाओं को बल देने वाली शक्ति का नाम है.




 

Comments (1)

On June 11, 2011 at 12:40 PM , SANDEEP PANWAR said...

बहुत हिम्मत वाली महिला है।